Four Years of Broken Promises, Lies and Unofficial Emergency

मैं कोई economist या analyst नहीं हूं या कुछ ज्यादा पढ़ा-लिखा उम्रदराज आदमी भी नहीं हूं लेकिन आम आदमी जरूर हूँ और मुझे सोचने, कहने एवं पूछने का पूरा हक है कि क्या मेरे वोट के साथ इंसाफ़ हुआ है?

जहाँ कहीं भी आंकड़े उठाएं, हर जगह पूरी तरह फ़ेल हुई है सरकार और कोई बड़ी वजह भी नहीं। Banking Sector को बुरी तरह डूबा दिया गया है। नोटबंदी से क्या मिला? जितनी बुरी तरह implement किया गया ऐसे में मिलता भी क्या। लाखों करोड़ लेकर भाग गए उनका कुछ नहीं बल्कि उनसे गले मिला जाता है, जिनका ब्लैक मनी स्विस बैंक में पड़ा है उनका कोई ज़िक्र नहीं उनसे बोहोत अच्छे संबंध, लेकिन किसान मुँह में मरे हुए चूहे, सांप लेकर प्रदर्शन कर चुके, उनसे मिलने से भी इनकार।

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Army के senior officers लिखते हैं कि हमारे पास armoury पूरी नहीं है, बजट नहीं है, आर्मी को खोखला किया जा रहा है। junior कहते हैं हमें खाना अच्छा नहीं मिलता।

jobs, smart cities सब पता नहीं कहाँ हैं। लोग tax देते हैं international market में क़ीमत कम और भारत में हर रोज़ बढ़ती क़ीमतों से petroleum products पर भी सरकार की अच्छी ख़ासी कमाई हो रही है। इतनी कमाई, इतना पैसा कहाँ लग रहा है या यूँ कहें कि जा कहाँ रहा है?

विकास के नाम पर बोलने को कुछ है नहीं तो जनता खासकर नौजवानों के दिमाग में ये बातें डाली जा रही हैं कि मुस्लिम देश विरोधी हैं और Christians और कांग्रेस उनके साथ हैं। हर तरफ एक भय का माहौल बन गया है। सरेआम किसी व्यक्ति का क़त्ल कर दिया जाता है जिसका सिर्फ गुनाह यह है कि वो मुस्लिम है। छोटी छोटी बच्चियों से मंदिर में रेप इसलिए हो जाता है कि वो मुस्लिम है। भला हासिल क्या होगा सांप्रदायिक ज़हर घोलकर। क्या मुस्लिम होना गुनाह है यह देश जितना हिंदुओं का है उतना ही मुसलमानों का। आज़ादी की जंग में शामिल होने वाले युवाओं ने यह कभी नहीं सोचा होगा कि उनके देश में धर्म के नाम पर चुनाव, तनाव और दंगे होंगे। सही मायने में हम एक सभ्य समाज में तो नहीं है। भला वो समाज सभ्य कैसे हो सकता है जहाँ जाति, धर्म या रंग के आधार पर तय किया जाता है कि कोई शख्स अच्छा है या बुरा।

भाषा की तो बात ही क्या करनी। जिस तरह की भाषा का प्रधानमंत्री इस्तेमाल करते हैं इससे अच्छी भाषा तो फेरीवाला अनपढ़ आदमी भी बोल लेता है। उसके लहज़े में भी शालीनता के साथ साथ एक सलीक़ा होता है।

स्वामीनाथन रिपोर्ट जिसे पहले क़लम से लागू करने की बात कही थी उसका आज तक ज़िक्र नहीं सुना। और जिन नीतियों को जनता विरोधी बताकर 2006 से विरोध करते आए थे आज ख़ुद implemnet करने में लगे हैं चाहे आधार कार्ड को GST या फिर FDI. अगर ये सब इतने ही अच्छे थे तो फिर इतने साल विरोध क्यों किया?अगर उनसे भारत की प्रगति होती है तो फिर क्यों रोका इतने साल? कौन जिम्मेदार है इस नुक्सान का?

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इंसाफ की जहां बात आई है तो भला इस से बड़ी विडंबना क्या होगी कि सुप्रीम कोर्ट के जज press conference करके कहते हैं कि लोकतंत्र ख़तरे में है। PayTM जैसे apps मिलकर निजता का हनन कर रहे हैं। और भला ऐसी पोलिटिकल पार्टी से उम्मीद भी क्या की जा सकती है जिसके अध्यक्ष पर serious charges जैसे murder आदि मामले विभिन्न अदालतों में चल रहे हों।

Cobrapost का sting operation बताता है कि कैसे mainstream media house वाहियात के मुद्दों पर बहस करते हैं, देश में सांप्रदायिक ज़हर फैलाने में जुटे हुए हैं। अनपढ़ों और कूपढ़ों को बहकाने में किस तरह जोर लगा रखा है।

जब मीडिया किसी शासक के साथ हो जाएं ये भी इमरजेंसी का एक लक्ष्ण है। जहाँ सारा मीडिया 2019 इलेक्शन के लिए मोदी के favour में जुटा है वहीं कुछ मुट्ठीभर लोग हैं जो अपनी जान पर खेलकर भरसक कोशिश कर रहे हैं कि लोग किसी बहकावे में न आएँ।

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एक ऐसे वक्त में जहां सब मोदी की तानाशाही के साथ हो चले हैं तो जरूरी है मोदी का विरोधी होना। एक वक्त में एक ही से ही वफ़ा की जा सकती है जनता से या मोदी से। रविश कुमार जिनमें शीर्ष पर हैं। लेकिन जितनी मां-बहन की गालियां, धमकियां उन्हें मिलती हैं वो सिर्फ सोचने मात्र से भी रुह सहम जाती है। डर लगता कहीं कोई सिरफिरा या भाड़े का गुंडा कुछ ऐसा ना कर बैठे जिसे फिर से सही करना नामुमकिन से भी परे हो। और इस दौर में ऐसा बिल्कुल संभव है। गौरी लंकेश जैसे ना जाने ही कितने शहीद हो चुके। कौन है उन सबका जिम्मेदार?

इतने सारे वादे कर के क्या दिया? कहां है काला धन, smart cities, jobs, healthcare, महंगाई, development? पाकिस्तान या चाइना से युद्ध नहीं हुआ, इन 4 सालों में कच्चे तेल की क़ीमतें भी बोहोत ही कम रही हैं, दूसरे देशों से भी रिश्ते अच्छे रहे हैं। तो आखिर इस नाकामी की क्या वजह हो सकती है। नियत?

जब चार साल में सरकार अच्छा न कर पाई तो उससे कैसे उम्मीद की जा सकती है कि वो आगे वाली अवधि में अच्छा करेंगे। किस विश्वास पर एक और मौक़ा दिया जाए?

 

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2 thoughts on “Four Years of Broken Promises, Lies and Unofficial Emergency

  1. A baised analysis! If you follow economy of the country then you will able to understand the reason behind the bad loans. Bad loans or NPA is thos loan which were given during UPA and not during NDA.
    Same is true with the loans to Malya and Nirav Modi..
    IBC is the step taken in correct direction under BJP govt and the result is evident when Bhusan Steel is acquired by TATA.
    As far as the Petrol Price is concerned, just have some basic idea that how the economics of petrol price works in international market.

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  2. मैंने भी सोचा सरकार से चार साल के काम का हिसाब लु ,
    फिर लगा इतनी कम उम्र मे देश द्रोही काहे को बनना 😂😆

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